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मोपला ना तो कोई ‘कृषक विद्रोह’ था ना ही अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन था यह ‘हिन्दुओं का नरसंहार’ था।

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मोपला ना तो कोई ‘कृषक विद्रोह’ था ना ही अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन था यह ‘हिन्दुओं का नरसंहार’ था
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25 सितंबर, 2021 को कनाट प्लेस के चरखा पार्क में आयोजित कार्यक्रम में मोपला नरसंहार के 100 वीं वर्ष की श्रद्धांजली अर्पित की गई। जिनमें कई महत्वपूर्ण सम्मानित अतिथियों- भाजपा के वरिष्ठ राष्ट्रीय नेता श्री कपिल मिश्रा, श्री रमेश विधूड़ी, एडवोकेट श्रीमती मोनिका अरोड़ा, श्री जे नंदकुमार ने इस विषय पर अपना वक्तव्य दिया। सर्वप्रथम हमें इस घटना की ऐतिहासिक रूपरेखा जानना अति आवश्यक है जो प्रायः हमारे पाठ्यक्रम से दूर रखने का प्रयास किया गया।
जिन इतिहासकारों से हम भारत का निष्पक्ष इतिहास लिखने की उम्मीद रखते हैं उन्होंने जब-जब हिन्दुओं के नरसंहार वाली किसी घटना के बारे में लिखा तो इसे या तो एक ‘विद्रोह’ या ‘हिन्दू-मुस्लिम दंगे’ करार दिया। उनकी सोची समझी रणनीति तो यहाँ तक सफल हो गई कि उत्तर भारत में तो किसी को भी केरल के मालाबार में मोपला मुस्लिमों द्वारा हुए हिन्दुओं के नरसंहार के बारे में शायद ही पता हो। न सिर्फ अंग्रेजों की नीति मुस्लिम तुष्टिकरण की रही थी, बल्कि कर के हिन्दुओं के कत्लेआम की तरफ से आँख मूँद लिया।

मोपला हिन्दू नरसंहार को अक्सर ‘मालाबार विद्रोह’, या रिबेलियन कह कर सम्बोधित किया गया। जबकि वास्तव में यह 1921 में हुई केरल राज्य में ‘जिहादी नरसंहार’ की ये पहली वारदात थी, कि जो महात्मा गाँधी के असहयोग आंदोलन के साथ चले ‘खिलाफत आंदोलन’ का विस्तृत स्वरूप था। “R. C. Majumdar ने तो यह भी कह दिया कि गांधी जी भी मोपला विद्रोह की असलियत को समझने में धोखा खा गए” और इनके समर्थन में चला खिलाफत आन्दोलन वास्तव में एक हिन्दू नरसंहार का चित्रण प्रस्तुत किया।

मोपला हिन्दू नरसंहार के बारे में वामपंथी इतिहासकार कहते हैं कि ये अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह था। लेकिन अगर ऐसा था तो फिर मंदिर क्यों तोड़े गए थे.??
अगर ये “स्वतंत्रता संग्राम” था तो भारत के ही लोगों को अपना घर परिवार अपनी जमीन छोड़ कर क्यों भागना पड़ा था.? अंग्रेजों के विरूद्ध था तो हिन्दुओं का क़त्लेआम क्यों हो रहा था.?? जिहादियों का आतंक उस क्षेत्र में क्यों मचा हुआ था.? वो इसे मप्पिला मुस्लिमों का सशस्त्र विद्रोह कहते हैं। यदि ये विद्रोह था तो इसमें सिर्फ मुस्लिम ही शामिल क्यों थे.? बाकी धर्मों के लोग क्यों नहीं जुड़े थे.? यदि ज़मींदारों के खिलाफ किसानों का विद्रोह था तो इसमें धर्म परिवर्तन, लूटपाट और हत्या और बलात्कार क्यों हो रहा था.?? ऐस कौन सा विद्रोह था जहां लगभग 6 महीनों तक हिन्दुओं का नरसंहार चलता रहा था, जिसमें 10,000 से भी अधिक जानें गईं।

1921 में दक्षिण मालाबार में कई जिलों में मुस्लिमों की जनसंख्या अधिक थी जो कुल जनसंख्या का वो 60% थे और यह वृद्धि 18 वीं सदी में हैदर अली और टीपू सुल्तान के धर्मांतरण विस्तार नीति के साज़िश के तहत हुआ था।
असहयोग आंदोलन का वो समय आया जब महात्मा गाँधी ने मुस्लिमों का ‘विश्वास जीतने’ के लिए ‘खिलाफत आंदोलन/ खलीफा के लिए आंदोलन को कांग्रेस का समर्थन दिला दिया। ‘खिलाफत’ का मतलब क्या है.? ये आंदोलन तुर्की के खलीफा को पुनः स्थापित करने और ऑटोमन साम्राज्य को पुनः बहाल करने के लिए हो रहा था। तुर्की के खलीफा को पूरी दुनिया में इस्लाम का नेता पुनः नियुक्त करने के लिए हो रहा था।

जबकि भारत को तब तुर्की से ना कोई लेनादेना था और ना ही ऑटोमन साम्राज्य से। लेकिन, महात्मा गाँधी ने मुस्लिमों को कांग्रेस से जोड़ने के लिए उनके इस असंगठित आंदोलन के अभियान का समर्थन कर दिया, जिसके दुष्परिणाम हजारो हिन्दुओं को भुगतने पड़े। 18 अगस्त, 1920 का वो समय था जब महात्मा गाँधी ‘खिलाफत’ के नेता शौकत अली के साथ मालाबार में ‘असहयोग आंदोलन और खिलाफत’ के लिए ‘ जागरूक’ करने आए थे।

इसमें सबसे विवादित नाम आता है वरियामकुननाथ कुंजाहमद हाजी का, जो इस पूरे नरसंहार का सबसे विवादित शख्सियत है। वो मालाबार में ‘मलयाला राज्यम’ नाम से एक इस्लामी सामानांतर सरकार चला रहा था। ‘इस्लामिक स्टेट’ की स्थापना करने वाला कोई व्यक्ति स्वतंत्रता सेनानी कैसे हो सकता है.?? अब उस पर फिल्म बना कर उसके महिमामंडन की तैयारी हो रही है।
सम्मानित अतिथि के रूप में आए भाजपा के वरिष्ठ नेता कपिल मिश्रा ने कहा कि वो कहते हैं कि बात 100 साल पुरानी उसे भूल जाओ। हम हिन्दू 450 साल पहले तोड़े गए राम मंदिर को नहीं भूले और आज पुनः अयोध्या में भव्य राम मंदिर बन रहा हैं, तो ये 100 साल वर्ष पूर्व की घटना को कैसे भूल सकते हैं। यहीं एक साल पहले जामिया की दीवारों पर लिखा गया था खिलाफत 2.0, याद रखना अब तलक ना वो मानसिकता बदली है, ना वो इरादा बदला है, ना वो तरीक़ा बदले हैं। ये सोचने का समय भी है कि क्या हम केवल श्रद्धांजली देंगे या अब संकल्प भी लेंगे की क़त्लेआम, धर्म परिवर्तन का यह नंगा नाच बन्द होना चाहिए अब बस बहुत हो गया।

अन्य अतिथि के रूप में उपस्थित जे नंदकुमार कहते हैं कि हाजी एक ऐसे परिवार से आता था, जो हिन्दू प्रतिमाएँ ध्वस्त करने के आदी थे। उसके अब्बा ने भी कई दंगे किए थे, जिसके बाद उसे मक्का में प्रत्यर्पित कर दिया गया था। मोपला दंगे के दौरान कई हिन्दू महिलाओं का रेप, भ्रूण हत्या भी किया गया था, मंदिरों को ध्वस्त किया गया था। बाबासाहब भीमराव आंबेडकर ने ‘Pakistan or The Partition of India’ में लिखा है कि मोपला दंगा दो मुस्लिम संगठनों ने किया था।
इनके नाम हैं- ‘खुद्दम-ए-काबा (मक्का के सेवक)’ और सेन्ट्रल खिलाफत कमिटी। उन्होंने लिखा है कि दंगाइयों ने मुस्लिमों को ये कह कर भड़काना शुरू किया कि अंग्रेजों का राज ‘दारुल हर्ब (ऐसी जमीन जहाँ, अल्लाह की इबादत की इजाजत न हो)’ है और अगर वो इसके खिलाफ लड़ने की ताकत नहीं रखते हैं तो उन्हें ‘हिजरत (पलायन)’ करनी चाहिए। आंबेडकर ने लिखा है कि इससे मोपला मुस्लिम भड़क गए और उन्होंने अंग्रेजों को भगा कर इस्लामी राज्य की स्थापना के लिए लड़ाई शुरू कर दी।
मोपला के हाथों मालाबार के हिन्दुओं का भयानक अंजाम हुआ। नरसंहार, जबरन धर्मांतरण, मंदिरों को ध्वस्त करना, महिलाओं के साथ अपराध, गर्भवती महिलाओं के पेट फाड़े जाने की घटना, ये सब हुआ। हिन्दुओं के साथ सारी क्रूर और असंयमित बर्बरता हुई। मोपला ने हिन्दुओं के साथ ये सब खुलेआम किया, जब तक वहाँ सेना न पहुँच गई।”

अंततः यही कहना चाहूँगा कि जब भी आप इतिहास में जहाँ भी मोपला के बारे में पढ़ेंगे, आपको बताया जाएगा कि ये एक ‘कृषक विद्रोह था’, अंग्रेजों के खिलाफ था। लेकिन, इसकी आड़ में ये छिपाया जाता है कि किस तरह हजारों हिन्दुओं को मौत के घाट उतार दिया गया था।
इस कार्यक्रम के आयोजक श्री विकास पाण्डेय एवं श्री अनुप जी का धन्यवाद जिनके माध्यम से इतनी महत्वपूर्ण जानकारी को जानने और समझने का अवसर प्राप्त हुआ।

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